मेरा देव

 


विरह ताप से जलते मन की पीड़ा का अंत कहाँ है ?

हर क्षण भस्मीभूत हृदय के आतप का अंत कहाँ है ?

हर पल व्याकुल राह ताकती आँखों का विश्राम कहाँ है ?

अन्धकार में डूबी रात्रि का वो खोया अलोक कहाँ है ?

अश्रु - पूजित व्यथा - अलंकृत प्रेम का मेरा देव कहाँ है ?

कवि - राजू रंजन

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